जय श्री गणेश

श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) की जीवनी 

इस लेख में हम श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) की जीवनी के बारे में जान सकते है। 


 जीवनी (Biography) :- 
 श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) |  (24 सितंबर 1861 se 13 अगस्त 1936) मैडम कामा भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का  भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं
अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में तिरंगा फहराने के लिए सुविख्यात हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।

 उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित "वन्देमातरम्" पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि - ‘‘भारत में ब्रिटिश शासनजारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।’’ उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि - 

  ‘‘आगे बढ़ो,हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’

  यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में‘वन्देमातरम्’अंकित भारतीय ध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादाभाई नौरोजी की प्राइवेट से क्रेटरी भी रहीं। धनी परिवार में जन्म लेने के बावजूद इस साहसी महिला ने आदर्श औरदृढ़  संकल्प के बल  पर निरापद तथा सुखी जीवन वाले वातावरण को तिलांजलि दे दी और शक्ति के चरमोत्कर्षपर  पहुँचे साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजेखतरों  तथा कठिनाइयों का सामना किया।

 श्रीमती कामा का बहुत बड़ा योगदान साम्राज्यवादके विरुद्ध विश्व जनमत जाग्रत करना तथा विदेशीशासन से मुक्ति के लिए भारत की  इच्छा को दावे केसाथ प्रस्तुत करना था। भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए उन्होंने लंबीअवधि  तक निर्वासित जीवन बिताया था। तथ्यों केमुताबिक भीकाजी हालांकि अहिंसा में विश्वास रखती थींलेकिन उन्होंने अन्यायपूर्ण हिंसा के विरोध का आह्वानभी किया था। उन्होंने स्वराज के लिए आवाज उठाई  और नारा दिया−  आगे बढ़ो, हम भारत के लिए हैं और भारतभारतीयों के लिए है। 


 जीवन परिचय। :-  
  भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनमें लोगों की मददऔर सेवा करने की  भावना कूट−कूट कर भरी थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इसबीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीकहो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज केलिए यूरोप  जाने की सलाह दी गई थी। वर्ष 1902 में वहइसी सिलसिले में लंदन गईं और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम जारी रखा। भीकाजी नेवर्ष 1905 में अपने सहयोगियों विनायक दामोदरसावरकर और श्यामजी  कृष्ण वर्मा की मदद से भारतके ध्वज का  पहला डिजाइन तैयार किया था।  भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को  जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीयस्वतंत्रता के ध्वज को बुलंद किया था। उस सम्मेलन मेंउन्होंने भारत को अंग्रेजी  शासन से मुक्त करने की अपीलकी थी। उनके तैयार किए गए झंडे से काफी मिलते−जुलते डिजायन को बाद में भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया। वह अपने क्रांतिकारी विचारअपने समाचार-पत्र ‘वंदेमातरम्’ तथा‘तलवार’ में प्रकट करती थीं।   श्रीमती कामा की लड़ाई दुनिया-भर के साम्रज्यवाद के विरुद्ध थी। वह भारत के स्वाधीनता आंदोलन के महत्त्व को खूब समझती थीं, जिसका लक्ष्य  संपूर्ण पृथ्वी से साम्राज्यवाद के प्रभुत्व को समाप्त करना था। उनके सहयोगी उन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता’ मानते थे;जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात् महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिशविरोधी तथा असंगत कहते थे। यूरोप के समाजवादीसमुदाय में श्रीमती कामा का पर्याप्त प्रभाव था। यह उससमय स्पष्ट हुआ जब उन्होंने यूरोपीय पत्रकारों को अपने देश-भक्तों के बचाव के लिए आमंत्रित किया। वह‘भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन’ के नाम से विख्यात थीं। फ्रांसीसी अखबारों में उनका चित्र जोन ऑफ आर्क के साथ आया। यह इस तथ्य की भावपूर्ण अभिव्यक्ति थी कि श्रीमती कामा का यूरोप के राष्ट्रीयतथा लोकतांत्रिक समाज में विशिष्ट  स्थान था।  मैडम भीकाजी कामा ने भारत का पहला झंडा फहराया उसमें हरा,केसरिया तथा लालरंग के पट्टे थे। लाल रंगयह शक्ति का प्रतीक है, केसरिया विजय कातथा हरा रंग साहस एवं उत्साह का प्रतीक है। उसी प्रकार 8कमल के फूल भारतके 8 राज्यों के प्रतीक थे। ‘वन्दे मातरम्’ यहदेवनागरी अक्षरों में झंडे के मध्य में लिखा था। यह झंडा वीर विनायक दामोदर सावरकर और  श्यामजीकृष्ण वर्मा ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर बनाया था
 1907 ई. में स्टुटगार्ड (जर्मनी) में 'अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद सम्मेलन' में मैडम कामा ने तिरंगा झण्डा  फहराया और घोषणा की- यह भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज है।इसका जन्म हो चुका है। हिन्दुस्तान के युवा वीरसपूतों के रक्त से यह  पहले ही पवित्र हो चुका है। यहाँ उपस्थित सभी महानुभावों से मेरा निवेदन है कि सबखड़े होकर हिन्दुस्तान की आज़ादी के इस ध्वज की वंदना करें सभी ने खड़े होकर ध्वज वंदना की। मैडमकामा को 'क्रांति-प्रसूता' कहा जाने लगा। भीकाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के  विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्धमत को  प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लालरंग इस्तेमाल किया गया था।

 साथ ही उसमें बीच मेंदेवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था। जर्मनी में फहराया गया वह झंडा वर्तमान में  पुणेकी मराठा एवं केसरी लाइब्रेरी में रखा  हुआ है। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें काफ़ी कष्ट  झेलने पड़े।भारत में उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें एक देश से दूसरे देश में लगातार भागना पड़ा। वृद्धावस्था में वेभारत लौटी तथा 13 अगस्त, 1936 को बम्बई(वर्तमान मुम्बई) में गुमनामी की हालत में उनका देहांत हो गया।

 ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तानहिन्दुस्तानियों का है।’’
Share:

No comments:

Post a Comment

Thanks for Comment
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिन्दी व्याकरण !! महत्वपूर्ण प्रश्न और लेख !!
��जय श्री गणेश��
आप हमारे Youtube Channel को Subscribe कर सकते हो।
Link पर click कर के :- https://goo.gl/QVq485

Followers

Blogger templates

Popular Post

Labels